नज़राना इश्क़ का (भाग : 41)
सुबह हो चुकी थी, आज निमय बिना जगाये ही जागकर, नहाने धोने के बाद तैयार हो रहा था। जाह्नवी आँखे मलते हुए कमरे से बाहर आई, यह देखकर उसे बड़ी हैरानी हुई, वह अपनी आँखें और जोर जोर से मलने लगी मानो उसे ये भरम हो कि कहीं वो सपना तो नहीं देख रही।
"क्या हुआ कुम्भकर्ण की प्रिय शिष्या…!" निमय अपना मुँह पोंछकर टॉवेल उसके कंधे पर फेंकता हुआ बोला।
"हुआ तो कुछ भी नहीं कुम्भकर्ण के प्रथम शिष्य जी, पर लग रहा है आप बड़ी जल्दी में हो…! कही जा रहे हो क्या?" जाह्नवी ने उसकी ओर देखते हुए पूछा, निमय शर्ट की बटन सही से नहीं लगा पा रहा था, वह बटन लगाते हुए उसकी ओर देखने लगी।
"इतना सजधज के कहाँ जा रहा है? कहीं भाभी लाने तो नहीं…!" कहते हुए जाह्नवी जोर जोर से हँसने लगी।
"क्यों? अब क्या मैं कपड़े भी न पहनूँ?" निमय ने उसकी ओर देखकर मुँह बनाते हुए कहा।
"पहन लें न, बड़े शौक से पहन.. मुझे क्या?" कहते हुए जाह्नवी उसके टॉवल को उसके मुँह पर फेंककर मुँह बना ली।
"लो फिर शुरू हो गए इसके नखरे… हे भगवान..!" निमय ने अपना सिर पकड़ लिया।
"ठीक है बेटा, एक्सीडेंट का बहाना करके और कितने दिन ही बचा रहेगा, देख लूंगी मैं भी तुझे..!" जाह्नवी ने मुक्का बांधकर दिखाते हुए कहा।
"एक बार ठीक हो जाने दे फिर देख लेना तू…!" निमय ने सड़ा सा मुँह बनाया।
"उलेलूलेलूले... मेरा प्यार कमरचिमकट्टू-खट्टू…! अब ऐसा सड़ेला मुँह मत बना, चल माफ किया.. तू भी क्या याद रखेगा किस दिलेर से पाला पड़ा था..!" जाह्नवी ने धीरे से उसका गाल खींचते हुए कहा।
"बड़ी आयी दिलेर कहीं की हुंह..! चल थोड़ा सा घूमकर आता हूँ..!" कहते हुए निमय धीरे धीरे बाहर की ओर जाने लगा।
"ओये सुन न.. एक सवाल है! जवाब देगा?" जाह्नवी ने उसे रोकते हुए कहा।
"हाँ पूछ!" निमय ने बिना पीछे मुड़े जवाब दिया।
"अच्छा ये बता एक खंभे, खजूर और तुझमें की कॉमन है?" जाह्नवी ने गंभीर मुद्रा बनाते हुए सवाल किया।
"कुछ भी नहीं..!" निमय ने थोड़ी देर सोचकर जवाब दिया।
"फिर से सोच ले…!" जाह्नवी ने अपने सवाल पर जोर देते हुए कहा।
"अरे नहीं है कुछ कॉमन, काहे फालतू भेजा खा रही है…!" निमय मुँह बनाते हुए आगे बढ़ा।
"बिल्कुल कॉमन है, तीनों बिल्कुल लंबे हैं.. ताड़ की तरह.. और बिना किसी काम के…!" जाह्नवी ने मुँह बिचकाया।
"तू भी व्हेल की तरह है, मैंने तो कभी नहीं कहा न कि तू तीस हाथियों के बराबर है…!" निमय ने कंधे उचकाकर कहा।
"हें…! इसमें क्या लॉजिक है?" जाह्नवी का माथा चकराया।
"जो तेरे बात में लॉजिक है वही मेरे बात में भी…! अब जाने दे चुपचाप.. नौटंकी कहीं की…, तू जा के लॉजिक ढूंढती रह…!" कहने के साथ ही निमय गेट से बाहर निकल गया।
"रुक मैं भी आती हूँ!" जाह्नवी चिल्लाई।
"क्या हुआ जानू बेटा?" उसके पापा ने अपने कमरे से बाहर निकलते हुए पूछा।
"कुछ नहीं पापा…!" कहने के साथ जाह्नवी अपने कमरे में घुस गई। 'वो गधेड़ा अपने आपको समझता क्या है, अभी बस ठीक से खड़ा होना सीखा है, पर ये नहीं है कि दो चार दिन घर में रह ले, घूमने तो जाते ही थे न हम…!' थोड़ी देर में वह भी डालने कपड़े चेंज कर बाहर निकली।
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"हे फरु! कहाँ हो आप?" घर से थोड़ी दूर जाते ही निमय ने फरी को कॉल कर पूछा।
"बस थोड़ी देर में निकलने वाली हूँ, आप पार्क तक पहुँचो...!" सहर से फरी का स्वर उभरा।
"हूँ…!" कहने के साथ निमय ने कॉल कट कर दिया, पर उसने यह नहीं बताया कि वह अकेले और पैदल जा रहा था।
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पार्क में…
निमय को पार्क में आये करीबन दस मिनट बीतने को थे, वह पास की ही एक बेंच पर बैठा हुआ था। उसके चेहरे से साफ नजर आ रहा था कि वह किसी का बेसब्री से इंतेज़ार कर रहा था।
तभी पार्क में लड़कों का एक झुंड उसकी तरफ बढ़ता हुआ नजर आया, उसमें से एक दो लड़के वही थे जिनकी उसने कुछ महीने पहले इसी पार्क में मरम्मत की थी।
"रे साला… ये देख बहन का भाई…! उस दिन तो बड़ा उछल उछलकर मार रहा था.. आज ऐसे क्यों बैठा हुआ है।" उनमें से एक बोला।
"सुना है कि साले का एक्सीडेंट हो गया था, किसी ने ठोक दिया था।" दूसरे ने कहा।
"फिर ये साला जिंदा कैसे बच गया, पक्का शैतान का अवतार है ये…!"
"अरे नहीं रे, ये जिंदा इसलिए बचा है ताकि हम अपना हिसाब पूरा कर सकें।" उनमें से एक बोला जो उस दिन निमय के हाथों पीटा चुका था।
"जाने दो यार, पुरानी बातों को अब तक लेकर बैठे रहने का क्या फायदा!" उनमें से दूसरा बोला, जो पहले उनका लीडर हुआ करता था।
"कर दी ना नामर्दों वाली बात! साला इसीलिए तुम अब लीडर नहीं रहे… समझे..!" उसी लड़के ने कहा। "इसने तुम्हारे भाई पे हाथ उठाया, अब इसको दुनिया से उठा देने का है भाई लोग..!" चिल्लाते हुए वह निमय की ओर बढ़ा, शोरगुल सुनकर निमय का ध्यान उस ओर गया वो उठकर बाहर जाने की कोशिश करने लगा।
"अभी कहाँ जा रहे हो भिड़ू.. हिसाब तो बराबर करते जाओ..!" वह लड़का उसके सामने खड़ा होकर उसे रोकता हुआ बोला। निमय उसपर ध्यान दिए बिना आगे बढ़ने लगा।
"उस दिन तो बड़ा हीरो बन रहा था, आज क्या हुआ? सारी हीरोपंती निकल गयी क्या? हाहाहा…!" जोर जोर से हँसते हुए उस लड़के न निमय को धक्का दे दिया, निमय उठने की कोशिश करने लगा तभी एक ने उसके घुटने पर पैर रख दिया, निमय की जोर की चीख निकल गयी।
"और चिल्ला साले और चिल्ला… ! तेरी चीख मेरे कानों को सुकून पहुँचा रही है...जोर से चिल्ला साले…!" उस लड़के ने जूते से निमय के सिर को कुचल दिया, निमय को बेहिसाब दर्द का एहसास हुआ पर उसके मुँह से चीख नहीं निकली, जबड़े भींच लिए थे उसने, आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा, इससे पहले उसने खुद को इतना बेबस कभी महसूस नहीं किया था।
"वो अब नहीं चिल्लायेगा कुत्ते…!" तभी उन सब ने सिंहनी की दहाड़ सुनी, उस लड़के ने आवाज की दिशा में सिर घुमाया, एक जोरदार घूसे ने उसके जबड़े को झनझना कर रख दिया, वह जोर से चिल्लाते हुए जमीन पर बैठ गया। "अब चिल्लाने की बारी तुम सबकी है।" किसी शेरनी की तरह उन सभी पर झपट पड़ी वो।
"जानू तुम…!" निमय की आँखे यह हैरतअंगेज नजारा देखकर हैरत में पड़ गयी थी।
"बोला था अकेले मत जाओ बाहर.. पर तुम्हें सुनना ही कहाँ होता है?" जाह्नवी ने एक एक शब्द को चबाकर कहते हर शब्द के साथ एक एक को जोरदार किक और पंचेस जमाया, थोड़ी ही देर में सभी जमीन पर बिखरे पड़े थे, किसी का नाक टूटा हुआ था तो किसी के मुँह से खून आ रहा था, कोई अपने पेट को पकड़कर ऐंठ रहा था।
"ये मेरा भाई है, इसे रुलाने हँसाने का हक़ सिर्फ मेरा है, या फिर उसका होगा जिसे मैं ये हक़ दूंगी। आज कम मारा है, क्योंकि सुबह ब्रेकफास्ट नहीं किया था, अगली बार खा पीकर आउंगी…!" जाह्नवी ने उनकी ओर उंगली से इशारा करते हुए कहा। यह देखकर बेचारों के प्राण सूख गए, सभी किसी तरह वहां से बचकर निकलने की कोशिश करने लगे।
"कोई इज्जत तो है नहीं तुम्हारी, पिछली बार लड़के से पीटे अब लड़की से भी पिट लिए, मिल गयी आत्मा को शांति?" उनमें से एक बोला जो लड़ने से मना कर रहा था, वह अपना पेट पकड़कर कराह रहा था।
"अ..अबे यार बाकी सब बाद में कर लियो, अभी निकल यहां से…!" उस लड़के ने कहा, जिसका जबड़ा अब बुरी तरह से टूट चुका था।
"ऐसे कैसे?" जाह्नवी ने उसका कॉलर पकड़कर घसीटते हुए कहा। "पहले तुम सब मेरे भाई से सॉरी बोलो, अगर माफ कर दोय तो चले जाना और दुबारा मत इधर दिखना, और कान खोलकर सुन आज सलामत जा रहा है, अगली बार अगर गलती से भी सामने आ गया तो या तो एम्बुलेंस में जायेगा या अर्थी पे…!"
"अरे माफी देई दो माई बाप…! भूल हो गयी हमसे…! अब हम इस जन्म में तो क्या, अगले सात जन्म तक आपके आसपास नहीं भटकेंगे…!" उस लड़के ने अपने जबड़े को संभालते हुए गिड़गिड़ाकर कहा। निमय ने उन्हें जाने का इशारा किया, वे सभी अपने कपड़े झाड़ते हुए वहां से निकल लिए।
"तू यहां क्या कर रही है?" निमय ने जाह्नवी से धीरे से पूछा, जाह्नवी उसकी बातों पर ध्यान ने देते हुए अपने दुप्पटे के एक सिरे को फाड़कर उसके सिर पर पट्टी करने लगी। "बता न?" निमय ने जिद किया।
"वाह..! मतलब थैंक यू नहीं बोल सकते, मैंने इनकी खोपड़ी बचाई और ये जनाब मेरा भेजा कहा रहे हैं, सच है यार, भलाई का तो ज़माना ही नहीं रहा…!" जाह्नवी ने अपना हाथ पोंछते हुए सड़ा सा मुँह बनाकर कहा, आसपास के कुछ लोग आकर उनके पास खड़े हो गए, जाह्नवी ने एक बार सभी की ओर देखा और सभी वहां से रफ्फूचक्कर हो लिए।
"मैं क्यों बोलूं थैंक यू!" निमय ने मुँह टेड़ा किया।
"ठीक है इस साल से मुझे राखी बांध दिया करना!" जाह्नवी ने उसको खड़ा करते हुए कहा।
"तो कौन से साल नहीं बांधता?" निमय ने सड़ा सा मुँह बनाकर पूछा।
"हुंह..! घर चल तुझे बताती हूँ!" जाह्नवी ने उसे खींचते हुए कहा।
"उई माँ.. दर्द होता है रे…!" निमय जोर से चीखा, जाह्नवी ने तुरंत उसका हाथ छोड़ दिया, उसकी आँखों में नमी उतर आई। "हाहाहाहा मजाक कर रहा था पागल…! इतनी भी नहीं लगी..!" कहते हुए निमय जोर जोर से हँसने लगा।
"ठीक है ना… अब से तेरा एक सप्ताह तक घर से बाहर निकलना बंद..!" जाह्नवी ने गुस्से से कहा।
"अरे यार ऐसा जुल्म तो मत कर..!" निमय हाथ पैर जोड़ने लगा।
"अब कह दिया सो कह दिया, घर चल..!" जाह्नवी ने कहा। दोनो पार्क से बाहर निकले, तभी एक ब्लू कलर की कार वहां से निकली, उनकी दिशा में बढ़ी फिर थोड़ी देर रुक गयी, जैसे किसी का इंतेज़ार कर रही हो और फिर तेजी से दूसरी दिशा में आगे बढ़ गयी। जाह्नवी और निमय इन सब पर ध्यान न देते हुए आपस में ही खूब हाहा-हीही करते अपने घर की ओर बढ़े, रास्ते भर निमय, जाह्नवी से सिफारिश करता रहा कि आज जो हुआ वो किसी को न बताए! जाह्नवी हर बार बस मुस्कुराए जा रही थी।
क्रमशः…!